हर बार पहली दफे होता है जब तुझे सोचती हूं,
अपने अनंत शून्य को भरने का यही तरीका मुफीद पड़ा मुझे।
बेढब सी कल्पना में तुम बराबर साथ उड़ते हो कल्पनाओं के पंख लगाकर
खुरदुरी ज़मीन से शुरु कर लांघ जाते हैं हम सातों समुंदर दूरियों के
छूते हैं चौदहवों आसमान सपनों के।
क्या ही स्वाद है इस ख़याली पुलाव का कि महक मुझे हकीकत में भी तुझसे बांधे
रखती है।
No comments:
Post a Comment