बचे हुए को समेटने की जुगत भिड़ाता हुआ-सा कोई।
Friday 1 February 2013
आंसू
आंसू कभी नहीं सूखते.
वो भेदते हैं त्वचा का झीना आवरण और समा जाते हैं शरीर के भीतर,
दौड़ते हैं खून के साथ नसों-औ-शिराओं में.
दिलो-दिमाग से गुज़रकर
जज़्ब हो जाते हैं आत्मा में
शायद इसलिए आत्मा कभी नहीं मरती.
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